Mon. Jun 23rd, 2025
बुरे दिखने वाले लड़कों की डिमांड बढ़ गई है

मोहल्लों के सारे आड़े-तिरछे लड़के संदेह के घेरे में हैं. आजकल लगातार जिस तरह की खबरें आ रही हैं उन खबरों ने इन लड़कों को एकदम से हाईलाइट कर दिया है. महिलाएं फुसफुसाने लगी हैं. ये री देख तो ये लड़का एकदम ठीक नहीं दिखता है. जरूर किसी सुंदर लड़की से लफड़ा चल रहा होगा. इन लड़कों को भी इन बातों का अच्छी तरह से पता चल गया है. ये लड़के खबरें और आइना दोनों देखते हैं. इन्हें पता है कि घूरों के दिन फिर गए हैं. चेहरा भले ही पुराने ज़माने के पांच पैसे के सिक्के की तरह हो, लेकिन अब घर से निकलते हैं तो फुल कॉन्फिडेन्स के साथ निकलते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि मार्केट अब इन्हीं का है.

सुंदरता आउट ऑफ ट्रेंड

समय और जीवन तो चक्र में पहले से ही बंधे थे. कुछ समय पहले फैशन का भी चक्र चलने लगा था. पुराने ज़माने के बेल बॉटम और बैगीज़ फिर से दिखाई पड़ने लगे थे. पर फैशन डिजाइनरों ने इसे संभाल लिया. घुटने से फटा पैंट और उधड़ी हुई शर्ट को फैशन में ले आए. अब लोग इसे पहनकर खुश हैं. पुराने ज़माने का फैशन लौटकर आते-आते रह गया. लेकिन क्या स्वाद का भी चक्र चलता है? स्वाद का चक्र भला कैसे चल सकता है. मीठा तो जमाने से मीठा है और नमकीन जमाने से नमकीन है. जब स्वाद नहीं बदल सकता, उसका कोई चक्र नहीं चल सकता तो सुंदरता को पसंद करने का तराजू कैसे डगमगाने लगा? ऐसा क्यों हो रहा है कि जो सुंदर है वो नापसंद है, और जो सुंदर नहीं है वो ज्यादा पसंद है? गुलाब का फूल सुंदर दिखता भी है और खुशबू भी बिखेरता है. मान लो आपको गुलाब पसंद नहीं है, तो उसकी जगह आप रंजनीगंधा पसंद करेंगे या मोगरा पसंद करेंगे. मतलब कम से कम आपकी पसंद ऐसी तो होगी जो गुलाब के आसपास ही हो. आपको एकदम से बेशरम का फूल या धतूरे का फूल ही पसंद आने लगे तो समाज तो चौंक जाएगा ना. तो समाज यहां भी चौंक गया है. सबसे ज्यादा परेशान नौजवान मर्द हैं. कभी उन्हें नीले ड्रम से डराया जा रहा है. कभी सुपारी से और अब तो ये हनीमून पर हिल स्टेशन भी पक्का नहीं जाएंगे.

अर्थव्यवस्था पर आघात

पहले नीले ड्रम की बिक्री घटी. लोगों ने नीला ड्रम खरीदना बंद कर दिया. मांग कम हुई तो उत्पादन पर असर पड़ा. नीले ड्रम की फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों की छटनी कर दी गई. उनके बाल बच्चे भूखे मरने लगे. तभी किसी ने फैक्ट्री मालिक को सलाह दी कि ड्रम का रंग बदल दो. शायद बदनामी का रंग थोड़ा उतर जाए. अब पर्यटन का बाज़ार खराब हो रहा है. हिल स्टेशनों पर वैसे भी रोजी-रोटी के लाले रहते हैं. ऊपर से उस घटना को भी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं जिसके कारण कि ऑपरेशन सिंदूर चलाना पड़ा था. लोग कश्मीर की वादियों को छोड़कर दूसरा ठिकाना खोज ही रहे थे कि ये कांड हो गया. मेघालय में तो हनीमून मना रहे दूसरे जोड़ों पर उनके परिवार से इतना दबाव पड़ा कि उन्हें ट्रिप बीच में छोड़कर ही लौटना पड़ा.

हाय बदसूरत हम ना हुए

अब बात हम जैसे लोगों की भी कर ली जाए. हम जैसे लोगों से मेरा मतलब स्मार्ट और हैंडसम दिखने वाले नौजवानों से है. मैं नौजवान भले ही नहीं रहा. पर अभी इस तथ्य को पूरी तरह से स्वीकार करने में मेरी आत्मा को थोड़ा और समय लगेगा. खैर, अब ये स्मार्ट और हैंडसम नौजवान कोप भवन में चले गए हैं. वो उस दिन को कोस रहे हैं जिस दिन भगवान ने इन्हें हैंडसम बनाया था. वैसे कहा जाता है कि बच्चे तो सभी सुंदर ही पैदा होते हैं. बड़े होने पर उनकी सोच उनके चेहरे को आकार देती है. नामचीन बदमाश या आदतन अपराधी खूंखार क्यों दिखता है. असल में वो रात-दिन अपराध के बारे में सोचता है तो वो सोच उसके चेहरे पर भी उभर आती है. भारत में चेहरा पढ़ने की कला बहुत पुरानी है. लेकिन जिन्हें समझ ही नहीं है उनका क्या कर सकते हैं. बहरहाल इन हैंडसम और स्मार्ट दिखने वाले मर्दों के पास अभी इंतज़ार करने के अलावा कोई उपाय नहीं है. जब पसंद का ट्रेंड बदलेगा, तब इनकी बारी आएगी.

पूर्वजन्म का फैक्टर

हमने इससे पहले खूबसूरत फूलों की बात की और खुशबू की भी बात की. हमारी ये बातें इंसानी फितरत वालों के लिए थी. इंसान को इंसानियत क्रमबद्ध प्रक्रिया से प्राप्त होती है. 84 लाख योनियों से गुजरकर जब मनुष्य योनि में जन्म होता है तो संस्कारों के माध्यम से उसमें मनुषत्व का रोपण किया जाता है. संस्कार की प्रक्रिया अगर सही नहीं हुई तो पूर्व जन्म के संस्कार हावी होने लगते हैं. अब अगर कोई पिछले जन्म में सूअर रहा होगा या कोई निकृष्ठ प्राणी रहा होगा और इस जन्म में संस्कार प्रक्रिया सही नहीं हुई होगी तो उसे कलकल बहती नदी का साफ पानी कतई पसंद नहीं आएगा. उसे हरी भरी पहाड़ियों पर घुमड़ते हुए नीले नीले बादल बिल्कुल भी प्रभावित नहीं करेंगे. प्रकृति की अद्भुत चित्रकारी उसे एकदम रास नहीं आएगी. चेरापूंजी की बारिश में उसे लहू का रंग दिखाई देगा. उसे तो गंदगी से भरे बजबजाते बदबूदार नाले में ही स्वर्ग का अहसास होगा. अन्यथा मेघालय की सुरम्य वादियों में जाकर तो कातिल का दिल भी शायराना हो जाना चाहिए था. हम समझ रहे हैं कि अब वो सज़ा भुगतेंगे. पर हो सकता है कि अब वो अपनी सही जगह पर पहुंच रहे हों. हो सकता है कि जेल की सलाखें और लोगों की हिकारत भरी नजरें ही उनकी पसंदीदा मंज़िल हो.

आप समझ रहे हैं ना हमारा इशारा किस तरफ है. अगर आप नहीं समझ रहे हैं तो सवाल आपकी समझदारी पर उठेगा. क्योंकि हम खुलकर कुछ भी नहीं कहेंगे. हमने खुलकर कहा, तो हमपर सवाल उठ जाएगा. क्योंकि हमें तो बताया गया है कि बेटा जब भी चटखारा वाला लेख लिखो, तो ऊपर व्यंग्य मत लिखना. जिसे व्यंग्य की तरह लिखा ही ना गया हो, या जिसे व्यंग्य समझा ही ना जा सके, उस लेख के ऊपर ही व्यंग्य लिखा जाता है.

मलय बनर्जी

लेखक – मलय बनर्जी

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