हमारा ये शिर्षक आम पाठकों को थोड़ा कन्फ्यूज़ कर सकता है. दरअसल ये भारत की पुरानी पुलिसिया भाषा है. इसमें साकिन का मतलब होता है निवासी. फिर ये बेंजमिन नेतन्याहू उर्फ बैजनाथ यादव क्यों? और वो इंडिया का निवासी कैसे? दरअसल 2023 में जब इस्राइल और हमास का युद्ध चल रहा था तो इस्राइल का पक्ष लेने के लिए एक न्यूज चैनल ने दो एपिसोड का एक प्रोग्राम चलाया था. इस प्रोग्राम का मकसद ये साबित करना था कि यहूदी असल में यादव हैं. चैनल के शोधकर्ताओं ने तर्क भी दिए, जिसके बारे में हम आगे बात करेंगे. लेकिन लोगों ने इस प्रोग्राम का खूब मजाक बनाया और तरह-तरह के कमेंट्स किए. मजाक बनाने वाले ये वो लोग थे जो कभी शोध नहीं करते. इन्हें तो इतना भी नहीं पता कि आलू का नाम आलू क्यों है. पर किसी का मजाक बनाना हो तो इनसे ज्यादा अच्छा प्रदर्शन कोई नहीं कर सकता. किसी ने कहा कि हर यदुवंशी को बैजनाथ यादव उर्फ बेंजमिन नेतन्याहू का समर्थन करना चाहिए. किसी ने कहा कि इस्रराइल का मामला निपटा कर नेतन्याहू यूपी के फूलपुर में चुनावी सभा करेंगे. एक शख्स ने तो ये भी लिखा कि यादव का अपभ्रंश अगर यहूदी है तो सिक्किम सिखों का है, मेघालय मेघवालों का है, लाहौर लुहार भाइयों का है और सोनिपत सुनारों का है. मजाक बनाने वालों का अपना महत्व है, ये ना हों तो मजा भी नहीं आता. पर इसका मतलब ये भी नहीं है कि कोई रात भर सपने देखे और सुबह उठकर यहूदियों को यादव बता दे. निश्चित रूप से इस पर काम हो रहा था और कई सालों से हो रहा था. तथ्यपरख वैज्ञानिक शोध भी उपलब्ध हैं और कथा कहानियां भी बाज़ार में मौजूद हैं.
महाभारत युद्ध के बाद बची हुई यादव सेना श्रीकृष्ण से नाराज़ थी. सैनिकों का समूह रोज उस युद्ध को लेकर ही चर्चाएं किया करता था. उनकी नाराज़गी इस बात पर थी कि अगर कौरव पक्ष के सभी योद्धाओं को छल से ही मारना था तो श्रीकृष्ण ने यादव सेना को कौरवों को क्यों सौंप दिया था. युद्ध में बचे हुए सैनिक और शहीद सैनिकों के परिजन श्रीकृष्ण की शिकायत लेकर रोज़ बलराम जी के पास पहुंचते थे. श्रीकृष्ण को भी उनके खिलाफ उपज रहे इस असंतोष की जानकारी थी. कुछ सैनिक और नगरवासी अब भी श्रीकृष्ण के पक्ष में थे. श्रीकृष्ण के समर्थक और विरोधी कई बार चौक-चौराहों पर अपने अपने तर्क को लेकर आपस में लड़ भी पड़ते थे. आखिरकार ये फैसला हुआ कि एक महापंचायत की जाए, जिसमें सही और गलत का फाइनल फैसला हो जाए. ये महापंचायत प्रभाषक्षेत्र में होना तय हुआ. अंदेशा तो सबको था कि इसमें केवल वाद-विवाद ही नहीं होगा, खून-खराबा भी होगा. और ऐसा ही हुआ भी. लेकिन इससे पहले ही यादव सेना और द्वारिका के निवासियों का एक बड़ा समूह तटस्थ हो गया. इस समूह ने तय किया कि वो प्रभाषक्षेत्र में होने वाले महापंचायत में हिस्सा नहीं लेगा और ना ही किसी के पक्ष या विपक्ष में रहेगा. ये समूह अपने परिवार और पालतू मवेशियों के साथ द्वारिका से पलायन कर गया. कुछ लोग इनके पलायन को समुद्र के रास्ते होना बताते हैं. जबकि कुछ कहते हैं कि इनके पास अच्छे नस्ल की गिर और थारपारकर गायें हुआ करती थी, जिन्हें लेकर इन्होंने थार मरुस्थल पार किया और अफगानिस्तान होते हुए यूरोप की तरफ चले गए. आगे चलकर ये समूह कई टुकड़ों में बंट गया. बदलते प्राकृतिक परिवेश ने खान-पान बदल दिया तो भाषा और बोली भी बदल गई. बाद में इन्होंने ही यहूदी धर्म का आभिर्भाव किया.
चार हजार साल पुराना धर्म
महाभारत की घटना के करीब एक हजार साल बाद यहूदी धर्म का प्राकट्य हुआ. कुछ जानकार और इतिहासकार डंके की चोट पर इसका विरोध करते हैं कि यहूदी यादव नहीं है. पर वो ये क्यों नहीं बताते कि यहूदी धर्म की स्थापना करने वाले लोग पहले किस धर्म के थे या कौन थे. ये सवाल मजेदार इसलिए भी हो जाता है क्योंकि दुनिया के दो बड़े और प्रमुख धर्म तो यहूदी धर्म से ही निकले हैं. जबकि यहूदी धर्म को हिंदुओं की शाखा मानने वाले क्रमवार रूप से कई तथ्य सामने रख देते हैं.
जिस तरह श्रीकृष्ण के जन्म से पहले आकाशवाणी के माध्यम से अत्याचारी कंस को चेतावनी दी गई थी कि देवकी की 8वीं संतान तेरा वध करेगी. उसी तरह यहूदियों के पूज्य मूसा के जन्म से पहले मिस्र के राजा फराओ की लिए भी ठीक ऐसी ही भविष्यवाणी की गई थी. इस भविष्यवाणी के आधार पर कंस की तरह ही मिस्र के राजा फराओ ने उस समय जन्में एक वर्ष से कम उम्र के सभी बच्चों को जान से मारने का हुक्म दिया था.
इतना ही नहीं जिस तरह जन्म के बाद श्रीकृष्ण को टोकरी में रखकर यमुना पार कराया गया था और गोकुल में नंदबाबा के यहां छोड़ दिया गया था. उसी तरह मूसा को भी एक टोकरी में रखकर नदी में बहा दिया गया था. जिसे बाद में मिस्र की रानी ने पाला. इस तरह श्रीकृष्ण और मूसा दोनों का पालन दूसरे के घर पर हुआ. बलराम श्रीकृष्ण के बड़े भाई थे लेकिन प्रसिद्धि श्रीकृष्ण की हुई उसी तरह मूसा के भी एक बड़े भाई थे, जिनका नाम था हारून लेकिन यहां भी छोटे भाई मूसा ही प्रॉफेट बने.
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया तो प्रॉफेट मूसा ने वो 10 नियम निकाले जिनपर यहूदी धर्म कायम हुआ. श्रीकृष्ण जहां पले-बढ़े थे उस स्थान को छोड़कर उन्हें द्वारिका जाना पड़ा था. ठीक ऐसे ही मूसा को भी अपने हिब्रू कबीले के लोगों को लेकर मिस्र से निकल जाना पड़ा था. मूसा के साथ लोगों का मिस्र से यरुशलम तक का पलायन दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक पलायन माना जाता है.
जैसा कि हमने आपको पहले बताया कि महाभारत युद्ध के बाद यदुवंश में श्रीकृष्ण के खिलाफ असंतोष पैदा हो गया था ऐसा ही इस्राइल के लोगों ने आगे चलकर मूसा की अव्हेलना करनी शुरू कर दी थी, जिसके कारण उनका बिखराव हो गया था.
माइग्रेशन की कहानी
क्या इसका कोई जेनेटिक प्रमाण है कि भारतीय लोगों का यहूदियों या इज़राइली लोगों से कोई जेनेटिक संबंध है. भारत झुनझुनवाला की एक किताब है जिसका नाम है ‘Common Prophets of the Jews, Christians, Muslims and Hindus’ . इस किताब में वो लिखते हैं कि एक्सोडस के पारंपरिक स्थान के अनुसार, ये माना जाता है कि मोसेस Egypt से इज़राइल गए, लेकिन हमारा कहना है कि वे भारत से इज़राइल गए. बाइबल में Egypt और भारत, दोनों का नाम नहीं है. बाइबल की एक्सोडस की कहानी में कुछ स्थानों के नाम दिए गए हैं, जैसे कि मोसेस ने “मित्स्राइम” नामक जगह से एक्सोडस शुरू किया या “रामसेस” से शुरू किया. लेकिन ये मित्स्राइम और रामसेस कहां थे, इसका बाइबल में कहीं कोई उल्लेख नहीं है. कहानी इस प्रकार है कि लगभग 1400 ईसा पूर्व, मोसेस ने एक्सोडस को लेकर भारत से इज़राइल का रुख किया, और वहां लगभग 10वीं सदी ईसा पूर्व में सोलोमन ने पहला मंदिर बनाया. 586 ईसा पूर्व में असीरियन राजाओं ने उस मंदिर को तोड़ दिया और यहूदियों को बंदी बनाकर बेबीलोन ले गए. इसके बाद, लगभग 60 वर्षों तक यहूदी बेबीलोन में रहे. फिर साइरस नामक एक राजा हुआ जिसने उन्हें फिर से यरूशलेम जाने की अनुमति दी. प्रतीत होता है कि उस समय कुछ यहूदी वापस वहां नहीं गए. कुछ ईरान के परान के पास इसफाहन में बसे और कुछ भारत में लौट आए.
इसलिए दो माइग्रेशन हुए. पहला माइग्रेशन हिंदुस्तान से इज़राइल की ओर और दूसरा माइग्रेशन रिवर्स, जिसमें पहले इज़राइल से बेबीलोन और फिर बेबीलोन से भारत तक का सफर शामिल है. इन दोनों माइग्रेशनों को हमें साथ में समझकर चलना पड़ेगा तभी हम जेनेटिक्स संबंध ढूंढ पाएंगे.
ऐतिहासिक और जेनेटिक संबंध
भारत झुनझुनवाला कहते हैं कि अब इसका जेनेटिक्स से संबंध देखें. हमारा जीन बहुत लंबा होता है, जिसमे एक विशेष R2 जीन होता है. यह R2 जीन भारत के लगभग 10% लोगों में पाया जाता है और लगभग 1% आशकेनाज़ी यहूदियों में पाया जाता है. यहूदियों में लगभग 80% लोग आशकेनाज़ी होते हैं, और 20% सिफ़ार्डी या अन्य ग्रुप्स के होते हैं. यदि 80% लोगों में एक R2 जीन पाया जाता है, तो लगभग सभी में इसे मान सकते हैं. तो सवाल ये है कि जो 10% भारत में R2 जीन मिलता है, वो 1% आशकेनाज़ी में कैसे पहुंचा?
अब सवाल है कि 10% और 1% का क्या मामला है? यदि 10% यहूदियों में R2 जीन था, तो चार पीढ़ियों में ही ये घटकर 1.2% जीन रह जाएगा. पहली पीढ़ी में 10% से 5%, दूसरी में 2.5%, और तीसरी में 1.25%. तो चार से पांच पीढ़ियों में केवल 1% यहूदी में यह जीन बचेगा. अब इसकी तुलना हम एक्सोडस से करें. एक्सोडस हुआ लगभग 1500 ईसा पूर्व में, और आज का समय है 2000 ईसा बाद, यानी कि 3500 साल हो गए हैं. अगर एक पीढ़ी का समय 25 वर्ष मानें तो 140 पीढ़ियां इस दौरान हो चुकी हैं. इन 140 पीढ़ियों में केवल चार पीढ़ियों में यदि अंतरविवाह हुआ, तो जीन 10% से घटकर 1% हो गया. ये कोई अप्रत्याशित घटना नहीं है, ये संभव है कि जो लोग इतने साल तक बाहर घूमते रहे, उनमें से चार पीढ़ियों में अंतरविवाह हो गया हो और उनका जीन 1% रह गया हो.
R2 जीन के समानांतर R1a जीन का कंसंट्रेशन भारत में अधिक है, और जैसे-जैसे हम पश्चिम की ओर बढ़ते हैं, इसका कंसंट्रेशन कम होता जाता है. इससे संकेत मिलता है कि आशकेनाज़ी यहूदियों में पाया जाने वाला R2 जीन का उद्गम भारत में रहा होगा. तमाम अध्ययन ये साबित कर चुके हैं कि R2 जीन का केंद्र भारत में था.
अनातोले क्लियोसोव का अध्ययन
अनातोले क्लियोसोव एक रूसी वैज्ञानिक हैं जिन्होंने भौतिक रसायन विज्ञान, एंजाइम कटैलिसीस और औद्योगिक जैव रसायन के क्षेत्र में काम किया है. क्लियोसोव को “डीएनए वंशावली” के लेखक के रूप में भी जाना जाता है. क्लियोसोव ने एक अध्ययन किया जिसमें उन्होंने पाया कि भारत में 10% R2 जीन है, पाकिस्तान में 7-8%, ताजिकिस्तान में 6% है. इसके बाद जैसे-जैसे पश्चिम की ओर जाते हैं, इसका प्रतिशत घटता जाता है.
क्लियोसोव ने 39 लोगों के जीन का अध्ययन किया. उन 39 लोगों का अनुमान लगाया कि वे जिस कॉमन एंसेस्टर से उत्पन्न हुए हैं, वो लगभग 6000 साल पहले हुआ होगा. बाइबल के अनुसार, आदम का समय लगभग 6000 साल पहले या 4000 BC के आसपास माना जाता है. तो इसका मतलब ये हुआ कि यदि बाइबल की कहानी को मानें, तो आदम भारत में हुए और आज से 6000 साल पहले हुए, तो इनसे यह 39 लोग सभी उत्पन्न हुए होंगे.
क्लियोसोव ने ही एक और अध्ययन किया जिसमें उन्होंने बताया कि हमारे डीएनए में तमाम मार्कर होते हैं. इसके अंदर एक टुकड़ा है जिसे ‘सिक्स मार्कर’ कहते हैं, और उनका ये कहना है कि ये सिक्स मार्कर का जीन लगभग सभी भारतीयों और लगभग सभी यहूदियों में पाया जाता है. (14-12-23-10-10-14). इससे भी ये संकेत मिलता है कि ये जीन भारतीयों का है जो इज़राइल के यहूदियों में गया होगा.
इब्राहम बेनहर का शोध
इब्राहम बेनहर एक केरल के शोधकर्ता हैं. उन्होंने इजराइल से लेकर भारत तक यहूदियों की कब्रों का अध्ययन किया और पाया कि उनके कब्रों का एक विशेष आकार होता है जिसे डोलमैन कहा जाता है. ये डोलमेंस इजराइल से लेकर भारत तक लगातार श्रृंखलाबद्ध रूप से मिलते हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि यह रिवर्स माइग्रेशन वास्तव में हुआ था.
यहूदी और ज्यूस
यहूदी जाति का नाम यादव से नहीं बल्कि यदु से निकला है. य को ज कहने की परंपरा दूसरे देशों में ही नहीं भारत में भी मौजूद है. कोलकाता का जाधवपुर यूनिवर्सिटी असल में यादवपुर यूनिवर्सिटी है. तो यदु से ‘ज्यूस’ बनना कठीन नहीं है. “ज्यूस” यहूदी धर्म और समुदाय को संदर्भित करता है. जबकि “यहूदी” शब्द एक धर्म और एक जातीय समूह दोनों को संदर्भित करता है. “यहूदी” शब्द का उपयोग उन लोगों के लिए किया जाता है जो यहूदी धर्म का पालन करते हैं या जो यहूदी वंश के हैं. “ज्यूस” शब्द का उपयोग अक्सर “यहूदी” के पर्याय के रूप में किया जाता है, लेकिन इसका उपयोग यहूदी धर्म के अनुयायियों के लिए अधिक विशिष्ट रूप से किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, “यहूदी लोग” शब्द का उपयोग यहूदी धर्म के अनुयायियों और यहूदी वंश के लोगों दोनों के लिए किया जा सकता है. “ज्यूस” शब्द का उपयोग विशेष रूप से उन लोगों के लिए किया जा सकता है जो यहूदी धर्म का पालन करते हैं, चाहे उनका वंश कुछ भी हो.
“यहूदी” शब्द का उपयोग 19वीं शताब्दी के अंत में लोकप्रिय हुआ, जब यहूदी समुदाय को एक अलग जातीय समूह के रूप में पहचाना जाने लगा. “ज्यूस” शब्द का उपयोग पहले से ही था, लेकिन इसका उपयोग अधिक व्यापक रूप से किया जाने लगा जब “यहूदी” शब्द लोकप्रिय हुआ. आज, “यहूदी” और “ज्यूस” शब्द दोनों का उपयोग यहूदी धर्म और समुदाय को संदर्भित करने के लिए किया जाता है. “यहूदी” शब्द अधिक सामान्य है, जबकि “ज्यूस” शब्द अधिक विशिष्ट है.
साहित्यकारों की कलम में यहूदी
निबंधकार और उपन्यासकार हजारी प्रसाद द्विवेदी ने यहूदियों पर कोई विशेष शोध-प्रबंध या पुस्तक नहीं लिखी है. परन्तु उन्होंने अपने लेखन में मध्यकालीन इतिहास और संस्कृति पर व्यापक रूप से लिखा है, और यहूदी समुदाय के बारे में भी कुछ बातें कही हैं. यहूदी समुदाय भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, और द्विवेदी जी ने अपने लेखन में इस तथ्य को स्वीकार किया है.
इसी तरह महापंडित की उपाधि से सम्मानित साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन ने यहूदियों के बारे में उनके विचार और टिप्पणियां ‘अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा’ जैसी उनकी यात्रा-वृत्तांतों और लेखन में मिलती हैं. उन्होंने यहूदियों को एक घुमक्कड़ कौम के रूप में देखा, जिन्होंने व्यापार-कुशलता के साथ-साथ विज्ञान, दर्शन, साहित्य और संगीत के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. राहुल सांकृत्यायन ने ‘अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा’ में यहूदियों के बारे में लिखा है कि उनका घुमक्कड़ी धर्म उन्हें व्यापार-कुशल और उद्योग-निष्णात बनाने के साथ-साथ विज्ञान, दर्शन, साहित्य और संगीत के क्षेत्र में भी आगे बढ़ने का अवसर देता है. उन्होंने यह भी कहा कि यहूदियों ने अपने घुमक्कड़ी धर्म को भुला दिया, जिसका फल उन्हें सदियों तक भुगतना पड़ा.
सांकृत्यायन ने यहूदियों को एक ऐसे समुदाय के रूप में देखा जो एक स्थान पर टिके रहने के बजाय घूमते रहते थे, और यह घुमक्कड़ी उनके विकास और उन्नति का एक महत्वपूर्ण कारक थी. उन्होंने ये भी कहा कि यहूदियों की ये घुमक्कड़ी प्रवृत्ति उन्हें विभिन्न संस्कृतियों और ज्ञान-विज्ञान से परिचित होने का अवसर प्रदान करती थी, जिससे वे विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ सके.
सबसे अलग हैं यहूदी
यहूदी अगर मूल रूप से उस स्थान के होते जहां वो इस समय हैं तो उनपर वहां का स्थानीय प्रभाव निश्चित रूप से देखने को मिलता. 1948 में भी जब यहूदियों के लिए नए राष्ट्र के रूप में इस्राइल बना तब भी उनका समूह यूरोप के अलग अलग हिस्सों में रह रहा था. लेकिन अपना देश बनते ही लगभग सारे यहूदी इस्राइल पहुंच गए. उनके आनुवांशिक लंबे संघर्ष ने उन्हें एकजुट कर दिया. उस समय भारत में भी 20 हजार यहूदी थे जिसमें से दस हजार इस्राइल चले गए. इस वक्त भी यहां उनकी संख्या दस हजार के करीब है. यहूदियों से भारत का या यदुवंश का संबंध जोड़ने से किसी को कोई फायदा या नुकसान नहीं होगा. लेकिन दुनिया के उन दो बड़े धर्मों को दिक्कत ज़रूर हो जाएगी जो यहूदी धर्म से ही निकले हैं. इसलिए आप कितनी भी दलीलें दे दीजिए ये सच्चाई कभी स्वीकार नहीं की जाने वाली है.