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संगीतकारों के बीच यादगार युद्ध

रफी साहब की आवाज़ पर 8 संगीतकारों ने खेला था दांव

आप भले ही किसी भी पीढ़ी के हों लेकिन आपने फिल्म दस लाख का ये गाना तो ज़रूर सुना होगा जिसके बोल थे “आ लग जा गले दिलरूबा” और फिल्म तीसरी मंजिल का ये गाना “दीवाना मुझसा नहीं, इस अंबर के नीचे” इसे नहीं सुना होगा हो ही नहीं सकता. मोहम्मद रफी साहब के इन सदाबहार और दिलकश नग्मों ने वैसे तो पूरी दुनिया का दिल जीता है. लेकिन 1966 में जब ये गाने अस्तित्व में आए थे तब हिंदी सिनेमा का वो स्वर्ण युग चल रहा था जिसमें अपने अपने फन के सभी महारथी मैदान में थे. ये महारथी अपनी अपनी कला का एक से बढ़कर एक शानदार मुज़ाहिरा कर रहे थे. 1966 में बॉलीवुड के गोल्डन एरा में गीतकार, संगीतकार, निर्देशक, कहानीकार, अभिनेता-अभिनेत्री और निर्माता मानो पूरी तन्मयता से अपनी फिल्मों को खूबसूरत और यादगार बनाने के लिए कमर कसे हुए थे. ये वो दौर था जब फिल्म निर्माण से जुड़े सभी लोग अपने काम को इबादत समझते थे और एक दूसरे से स्वस्थ्य प्रतिस्पर्धा भी हुआ करती थी. खासकर गानों को लेकर.

बेहतर गाने बनाना युद्ध जैसा होता था

रफी साहब के गाए हर एक गानों के पीछे पूरी एक कहानी चल रही होती थी. फिल्म के सिचुएशन पर गाना लिखने से लेकर उसके पर्दे पर आने तक की सारी कवायदें एकदम युद्ध की रणनीति के जैसी होती थीं. असल में ये एक अघोषित युद्ध ही होता था. कौन किससे कितना बेहतर कर सकता है. कौन किसे पछाड़ सकता है, और कौन किससे ज्यादा हुनरमंद है. इस युद्ध का फैसला आता था फिल्म फेयर अवार्ड के रूप में. जिसकी शुरूआत हुई थी 1954 से. जीहां 1966 में फिल्म फेयर अवार्ड के लिए उस दौर के महान संगीतकारों के बीच एक जबरदस्त युद्ध हुआ था. सबके पास हथियार के रूप में एक ही तलवार थी. जिसका नाम था मोहम्मद रफी.

किसने कौन सा पैतरा चला ?

संगीतकारों के लिए एक अघोषित चुनौती थी कि रफी साहब की आवाज़ का कौन कितना बेहतर इस्तेमाल कर सकता है. जाहिर है जिसका म्युजिक कॉम्पोजिशन सबसे बेहतर होता अवार्ड का सेहरा उसी के सिर पर बंधना था. तो क्या हुआ था उस युद्ध का परिणाम. कौन कौन महारथी संगीतकार इस युद्ध में जोर आजमाइश कर रहे थे. गीत-संगीत के इस महासंग्राम में रफी साहब की आवाज़ पर किसने कौन सा पैतरा चला. किसने किसको दी मात और कौन बना विजेता. यही बताने जा रहे हैं हम यहां.

एक आवाज़, 8 संगीतकार

1966 में म्यूजिक डायरेक्शन का फिल्म फेयर अवार्ड के लिए बॉलीवुड में जो जंग छिड़ी थी उसमें संगीतकार खैय्याम, आरडी बर्मन, संगीतकार रोशन, वयोवृद्ध संगीतकार एसडी बर्मन, नए उभरते संगीतकार शंकर-जयकिशन, संगीतकार मदन मोहन, संगीतकार ओपी नैयर, और संगीतकार रवि, इस तरह से कुल 8 संगीतकार शामिल थे. ये सभी संगीतकार अपने अपने फन के साथ एक-दूसरे को कड़ी टक्कर दे रहे थे.

खैय्याम और राजेश खन्ना

सबसे पहले बात करते हैं उस फिल्म की जिसने बॉलीवुड को पहला सुपर स्टार दिया था. फिल्म थी आखिरी खत. चेतन आनंद के निर्देशन में बन रही इस फिल्म में दो लोगों ने अपना डेब्यू किया था. पहले थे हीरो राजेश खन्ना. जीहां राजेश खन्ना की ये पहली फिल्म थी. उनके अलावा गायक भूपेन्द्र सिंह भी पहली बार प्लेबैक सिंगिग कर रहे थे. फिल्म में 5 गाने थे जिन्हें रफी साहब के अलावा लता मंगेशकर जी, मन्ना डे जी और भूपेन्द्र सिंह जी ने गाया था. गीतकार कैफी आज़मी के लिखे इन नग्मों को संगीत से सजाया था संगीतकार खैय्याम ने. राजेश खन्ना की ये पहली फिल्म तो बॉक्स ऑफिस पर मुंह के बल गिर गई. लेकिन इसके गाने हिट हो गए. और संगीतकार खैय्याम रफी साहब के गाए इस गाने को लेकर मैदान में ताल ठोंक रहे थे. वो गाना था “कुछ देर और ठहर, कुछ देर और ना जा”.

दूसरे नंबर के योद्धा थे संगीतकार एसडी बर्मन साहब के बेटे आरडी बर्मन. विजय आनंद के निर्देशन में बन रही फिल्म तीसरी मंजिल में मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे गीतों को आरडी बर्मन ने संगीतबद्ध किया था. फिल्म में कुल 8 गाने थे. दो आरडी बर्मन ने खुद गाए थे. दो रफी साहब के एकल थे और चार गाने रफी साहब का आशा भोसले जी के साथ डुयेट थे. हांलाकि आरडी बर्मन के पास इस साल एक और फिल्म थी पति-पत्नी. लेकिन वो जिस गाने को लेकर मैदान में दो दो हाथ करना चाहते थे वो था फिल्म तीसरी मंजिल का रफी साहब का आशा जी के साथ गाया “ओ मेरी सोना रे सोना रे सोना” वाला गाना.

रोशन साहब ने कसी कमर

संगीतकारों के इस मुकाबले में तीसरे संगीतकार थे रोशन साहब. इस साल रोशन साहब के पास भी दो फिल्में थीं. दादी मां, और ममता. फिल्म दादी मां में भी रफी साहब का एक शानदार गाना था. जिसके बोल थे “जाता हूं मुझे अब ना बुलाना”. और फिल्म ममता में 7 गाने थे जिसे रफी साहब के अलावा लता मंगेशकर, हेमंत कुमार, सुमन कल्याणपुर और आशा भोसले ने गाया था. रफी साहब का एक गाना आशा भोसले जी के साथ था. इस गाने के बोल थे “इन बहारों में अकेले ना फिरो”. फिल्म के गानों को लिखा था मजरूह सुल्तानपुरी ने और निर्देशक थे असित सेन. संगीतकार रोशन साहब जिस गाने को लेकर फूले नहीं समा रहे थे वो फिल्म ममता का रफी साहब का ये गाना था. इस गाने के बोल थे “रहे ना रहे हम, महका करे”.

संगीतकारों के भीष्म पितामह

इस जंग के सबसे बड़े महारथी और संगीतकारों के भीष्म पितामह थे एसडी बर्मन जी. और इनके हाथ में फिल्म गाइड नाम का वो दिव्यास्त्र था जो कि देवआनंद साहब का ड्रीम प्रोजेक्ट भी था. एसडी बर्मन के सारथी बने थे महान गीतकार शैलेन्द्र. उनके लिखे 10 गानों के लिए एसडी बर्मन धुनें बना रहे थे. एसडी बर्मन ने अपने अनुभवों का पूरा तरकश, संगीत वाद्य यंत्रों के माध्यम से इस फिल्म के लिए खाली कर दिया था. रफी साहब के अलावा इन गानों को अपनी आवाज़ दी थी खुद सचिन देव बर्मन जी, लता मंगेशकर जी, किशोर दा और मन्ना डे साहब ने. सभी गाने एक से बढ़कर एक थे. एसडी बर्मन साहब को संगीत के लिए और लता जी को आज फिर जीने की तमन्ना है गाने पर फिल्म फेयर अवार्ड के लिए नॉमिनेट भी किया गया था.

शंकर और जयकिशन की जोड़ी

1966 के इस जंगी अखाड़े में पांचवे खिलाड़ी के रूप में मौजूद थी शंकर-जयकिशन की जोड़ी. इनके पास भी दो फिल्में थी. सूरज और लव इन टोक्यो. दोनों ही फिल्मों के गानों को हसरत जयपुरी ने लिखा था और दोनों ही फिल्मों में रफी साहब के गाने धूम मचा रहे थे. लव इन टोक्यो में कुल 8 गाने थे जिसे रफी साहब के अलावा मन्ना डे जी और लता जी ने गाया था. इसमें रफी साहब के तीन गाने थे. फिल्म सूरज बड़े कैनवस वाली फिल्म थी. जिसे जुबली कुमार यानि कि राजेन्द्र कुमार के आइडिया पर प्रोड्यूसर एस कृष्णमूर्ति लेकर आए थे. उन्होंने टी गोविंदराजन को साथ लेकर इसे डायरेक्ट किया. भव्य सेट और बड़े बजट के साथ ये फिल्म रंगीन शूट की गई. राजेन्द्र कुमार ने ही सलाह दी थी कि राजकुमारी के रूप में वैजयंतीमाला को इसमें लिया जाए. एस कृष्णमूर्ति ने राजेन्द्र कुमार की सभी सलाह मानी और राजेन्द्र कुमार का आइडिया काम कर गया. सूरज के लिए गाने लिखे थे शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी ने. फिल्म में कुल 7 गाने थे जिसे रफी साहब के अलावा आशा भोसले जी, सुमन कल्याणपुर जी और एक नई गायिका शारदा ने गाया था. रफी साहब के दो गाने एकल थे और तीन गाने आशा जी के साथ युगल थे. कमाल की फिल्म, कमाल का संगीत और कमाल के गाने. फिल्म सूरज में सबकुछ कमाल का था. इसे फिल्मफेयर के लिए कई श्रेणियों में नॉमिनेटेड किया गया था.

संगीतकार मदन मोहन

1966 में हुई संगीतकारों की इस महायुद्ध में छठें योद्धा थे संगीतकार मदन मोहन. वो राज खोसला के निर्देशन में बन रही फिल्म मेरा साया के लिए संगीत दे रहे थे. इसके लिए गाने लिखे थे राजा मेहंदी अली खान ने. फिल्म में 6 गाने थे 4 गाने लता मंगेशकर जी के, एक गाना आशा भोसले जी का और एक गाना रफी साहब ने गाया था. संगीतकार मदन मोहन रफी साहब के गाये “आपके पहलु में आकर रो दिए” गाने को लेकर काफी उम्मीद से थे.

ओपी नैयर साहब

संगीतकार योद्धाओं में सातवां नाम था ओपी नैयर साहब का. उनके पास फिल्म थी ये रात फिर ना आएगी. फिल्म के गाने लिखे थे मशहूर गीतकार एसएच बिहारी ने. फिल्म में कुल 8 गाने थे. 4 गाने आशा भोसले जी के एकल थे. एक गाना महेन्द्र कपूर जी का था. एक गाना आशा जी के साथ मीनू पुरुषोत्तम ने गाया था और दो गाने रफी साहब का आशा जी के साथ था. ओपी नैयर साहब को पूरा भरोसा था कि रफी साहब और आशा जी का गाया “फिर मिलोगे कभी इस बात का वादा कर लो” गाना उनकी संगीत के कारण अवार्ड का हकदार है.

संगीतकार रवि साहब

संगीतकार रवि साहब इस जंग के आठवें और आखिरी योद्धा थे. उनके पास भी दो फिल्में थीं. दस लाख और दो बदन. बात करें फिल्म दस लाख की तो देवेन्द्र गोयल के निर्देशन में बन रही इस फिल्म के लिए गीतकार प्रेम धवन जी ने 7 गाने लिखे थे और रवि जी के संगीत निर्देशन में इन गानों को गाया था रफी साहब, आशा भोसले जी, कृष्णा कल्ले जी और ऊषा मंगेशकर जी ने.

रवि साहब के संगीत निर्देशन वाली दूसरी फिल्म दो बदन की बात करें तो राज खोसला के निर्देशन में बन रही इस फिल्म के लिए जानेमाने गीतकार शकील बदायूंनी ने 6 गाने लिखे थे. लता जी ने एक गाना गाया था. आशा भोसले जी ने दो गाने गाए थे और बाकी के तीन गानों में रफी साहब की दिलकश आवाज़ खनक रही थी. सभी गाने एक से बढ़कर एक और शानदार म्यूजिक ट्रैक के साथ थे.

फिल्म दो बदन भी फिल्म फेयर के लिए नॉमिनेट हो गई थी. रवि जी को भरोसा था कि रफी साहब के गाए “रहा गर्दिशों में हरदम” गाने के कारण इस साल तो उनका सितारा आसमान में चमक कर ही रहेगा. वो इस गाने को लेकर एकदम कॉन्फिडेंट थे.

रफी साहब की आवाज़ पर चक्रव्यूह

1966 के फिल्म फेयर के इस महायुद्ध में 8 संगीतकारों ने अकेले रफी साहब की आवाज़ को लेकर ऐसा चक्रव्यूह रचा था कि इन गानों को देखने सुनने वाले अपना सुध-बुध खो बैठे थे. मुकाबला बहुत ही रोचक था. सभी गाने एक से बढ़कर एक और एक दूसरे को कांटे की टक्कर देते हुए.

इस मुकाबले में एक बात तो एकदम साफ हो गई थी कि चाहे कुछ हो जाए रफी साहब को तो बेस्ट मेल सिंगर का अवार्ड मिलना ही मिलना था. फैसला सिर्फ इस बात का होना था कि किस संगीतकार ने गीतकार की रचना को रफी साहब से सबसे अच्छा गवाया है. किसने सबसे अच्छा म्यूजिक ट्रैक बनाया है.

हिंदुस्तान में हुई फूलों की बारिश

नतीजा फिल्म सूरज के पक्ष में आया. और “बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है” इस गाने ने बाजी मार ली. 1966 के लिए फिल्म फेयर अवार्ड 1967 में दिए जाने थे यानि की इन सभी गानों को लोकप्रियता के पैमाने पर खरा उतरने के लिए पूरे एक साल का समय था. और इस एक साल में बहारों फूल बरसाओं गाने ने पूरे हिन्दुस्तान में फूल बरसा दिए थे.

शंकर-जयकिशन की जोड़ी को 1966 का श्रेष्ठ संगीतकार का अवार्ड मिला. रफी साहब को बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर से नवाज़ा गया. शंकर-जयकिशन से पराजित उनके निकटतम प्रतिद्वंदी पितामह भीष्म सरीखे महान संगीतकार एसडी बर्मन अपनी आंखों को गीला होने से नहीं रोक पाए थे.

मलय बनर्जी

लेखक – मलय बनर्जी

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