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कहां से शुरू हुआ था ड्रोन का सफर

बातें अमन और भाईचारे की…और विकास हथियारों का

भारत और पाकिस्तान के बीच हुए ऑपरेशन सिंदूर का संघर्ष हो या फिर रूस और यूक्रेन के बीच तीन साल से जारी युद्ध की विभिषिका हो. हमने देखा कि मानव रहित छोटे विमान या छोटी पनडुब्बियों ने रोंगटे खड़े कर देने वाला तहलका मचाया है. दुनिया में ड्रोन का सफर कैसे, कब और कहां शुरू हुआ आइए जानते हैं.

ड्रोन का विकास, पशुता की प्रवृत्ति ?

हिंदी के प्रसिद्ध लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी ने 1951 में एक निबंध लिखा था जिसका शिर्षक था नाखून क्यों बढ़ते हैं. उन्होंने इस निबंध में लिखा था कि नाख़ून का बढ़ना पशुता की निशानी है और काटना मनुष्यता की. अस्त्र-शस्त्र के निर्माण की होड़ मनुष्य का ऐसा आचरण है जिसके मूल में पाशविक वृत्ति है. अनुशासन और संयम से पशुता को दबाया जा सकता है. हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का लिखा ये निबंध आज भी प्रासंगिक है. दुनिया के सारे देश अमन-शांति और भाईचारे की बात तो करते हैं और साथ ही साथ एक दूसरे के समूल नाश की तैयारी भी करते हैं. ड्रोन समेत तमाम घातक हथियारों का विकास मनुष्य ने शांति के दौर में ही किया है.

ड्रोन से हमारा पहला परिचय

हम भारत के अभिजात्य वर्ग या दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों में रहने वाले लोगों की बात छोड़ दें, और गांवों-कस्बों और छोटे शहरों में रहने वाले आम भारतीयों की बात करें, तो साल 2009 से पहले तक हमने ड्रोन के बारे में सुना तो था लेकिन ये होता कैसा है इसकी जानकारी नहीं थी. साल 2009 में निर्देशक राजकुमार हिरानी की आमीर खान अभिनित एक फिल्म आई थी जिसका नाम था थ्री इडियट्स. इस फिल्म की कहानी एक इंजीनियरिंग कॉलेज के अंदर बुनी गई थी. इसमें एक कैरेक्टर का नाम था जॉय लोबो. उसने एक ड्रोन बनाया था. लेकिन उसमें कमी रह जाने के कारण जब कॉलेज के डायरेक्टर उसके प्रोजेक्ट को स्वीकार नहीं करते हैं तो रैंचो की भूमिका निभा रहा आमीर खान उसे पूरा करता है. जब वो ड्रोन उड़ने के काबिल होता है और उसे उड़ाकर जॉय लोबो के कमरे की खिड़की के पास ले जाया जाता है तो पता चलता है कि जॉय लोबो ने पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली है. सिनेमा हॉल में बैठा आम भारतीय दर्शक इस दृश्य को देखकर सहम जाता है. ड्रोन के साथ आम भारतीयों का यही पहला परिचय था. लेकिन युद्ध के मैदान में ड्रोन तो प्रथम विश्व युद्ध से मौजूद है.

प्रथम विश्व युद्ध में भी था ड्रोन

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन और अमेरिका में पहले पायलट रहित वाहन विकसित किए गए थे…ब्रिटेन ने एरियल टारगेटेड, एक छोटे रेडियो-नियंत्रित विमान का मार्च 1917 में पहली बार परीक्षण किया गया था. अमेरिका ने हवाई टारपीडो जिसे केटरिंग बग के नाम से जाना जाता है अक्टूबर 1918 को पहली बार उड़ाया था. एक साल के अंतराल में हुए अमेरिका और ब्रिटेन दोनों के उड़ान परीक्षणों में ड्रोन ने उम्मीद के मुताबिक परिणाम दिखाए थे, लेकिन युद्ध के दौरान दोनों का उपयोग नहीं किया गया था. युद्ध के दौरान मानव रहित विमानों का विकास और परीक्षण लगातार जारी रहा. 1935 में अंग्रेजों ने प्रशिक्षण उद्देश्यों के लिए लक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले कई रेडियो-नियंत्रित विमान बनाए. ऐसा माना जाता है कि ‘ड्रोन’ शब्द की शुरुआत इसी से हुई थी. इस समय इस्तेमाल किए जाने वाले ड्रोन में से एक मॉडल का नाम डीएच.82बी क्वीन बी है. रेडियो नियंत्रित ड्रोन का निर्माण संयुक्त राज्य अमेरिका में भी किया जाता था और लक्ष्य अभ्यास और प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल किया जाता था.

वियतनाम युद्ध में टोही ड्रोन

टोही यूएवी को पहली बार वियतनाम युद्ध में बड़े पैमाने पर तैनात किया गया था. ड्रोन का इस्तेमाल कई नई भूमिकाओं में भी किया जाने लगा, जैसे कि युद्ध में प्रलोभन के रूप में काम करना, तय लक्ष्यों पर मिसाइल दागना और मनोवैज्ञानिक ऑपरेशन के लिए पर्चे गिराना. वियतनाम युद्ध के बाद ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाहर दूसरे देशों ने भी मानव रहित हवाई तकनीक का पता लगाना शुरू कर दिया. नए मॉडल अधिक परिष्कृत होते गए, जिनमें बेहतर सहनशक्ति और बेहतर उड़ान क्षमता थी. अब तो ऐसे मॉडल भी विकसित कर लिए गए हैं जो लंबी उड़ानों में ईंधन की समस्या से निपटने के लिए सौर ऊर्जा जैसी तकनीक का उपयोग करते हैं.

ड्रोन के इतिहास के महत्वपूर्ण पड़ाव

1849 – प्रथम विश्व युद्ध से पहले यूरोप की ऑस्ट्रियाई सेना ने वेनिस पर हमला करने के लिए मानव रहित गुब्बारों का उपयोग किया था. इसे ड्रोन का पहला स्वरूप कह सकते हैं. पहला विश्व युद्ध- ब्रिटिश सेना ने 1916 में रेडियो नियंत्रित विमान विकसित किया, जो बाद में “एरियल टारगेट” के रूप में जाना गया.

1930 – स्कॉटलैंड में 1943 में निर्मित एक क्वीन बी, डे हैविलैंड एयरक्राफ्ट म्यूजियम में प्रदर्शित है. इसने ब्रिटिश सेना की तोपों के लिए कम से कम तीन बार उड़ान भरी थी. डे हैविलैंड DH82B “क्वीन बी” को पहला आधुनिक ड्रोन कहा जा सकता है. दूसरा विश्व युद्ध- “क्वीन बी” को दूसरे विश्व युद्ध में एक लक्ष्य ड्रोन के रूप में इस्तेमाल किया गया था. ये एक रेडियो नियंत्रित विमान था जिसका उपयोग सैन्य प्रशिक्षण और परीक्षण के लिए किया जाता था. “क्वीन बी” का उपयोग ब्रिटेन की रॉयल एयर फोर्स और रॉयल नेवी ने किया था.

1950 – अमेरिकी सेना ने विभिन्न उद्देश्यों के लिए ड्रोन का उपयोग करना शुरू कर दिया था, जिसमें परमाणु परीक्षणों के लिए लक्ष्य प्रदान करना, हथियारों का विकास करना, और जासूसी करना शामिल है. अमेरिका ने क्यूबा के पास ड्रोन का उपयोग करके जासूसी की थी.

1970 – संयुक्त राज्य अमेरिका ने कुछ मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) या ड्रोन विकसित और उपयोग किया था. इन ड्रोनों का उपयोग जासूसी, लक्ष्य अभ्यास, और दूसरे सैन्य उद्देश्यों के लिए किया गया था. इन ड्रोनों में, रयान मॉडल 147 “लाइटनिंग बग” और लॉकहीड एमक्यूएम-105 “एक्विला” शामिल हैं. रयान मॉडल 147 का उपयोग उत्तरी वियतनाम, कम्युनिस्ट चीन और उत्तरी कोरिया पर जासूसी के लिए किया गया था, जबकि एमक्यूएम-105 का उपयोग लक्ष्य निर्धारण के लिए किया गया था.

1980 – इस दशक में, ड्रोन के विकास में महत्वपूर्ण प्रगति हुई. ड्रोन को अधिक शक्तिशाली और सटीक बनाया गया, और उनकी उड़ान की अवधि भी बढ़ाई गई. ड्रोन में GPS और अन्य तकनीकी उपकरणों का भी उपयोग शुरू हो गया, जिससे उनकी कार्यक्षमता में और वृद्धि हुई. 1980 में जापान और यूरोप में ड्रोन का उपयोग मुख्यतः सैन्य और कुछ हद तक औद्योगिक क्षेत्रों में किया जा रहा था.

2000 – ड्रोन प्रौद्योगिकी में तेजी से विकास हुआ, जिससे सैन्य और नागरिक दोनों क्षेत्रों में इसके उपयोग में वृद्धि हुई. 2000 में, प्रसिद्ध प्रीडेटर ड्रोन को पेश किया गया और इसका उपयोग अफगानिस्तान में मिसाइल लॉन्च करने और आतंकवादी ओसामा बिन लादेन की तलाश में किया गया था. अगले वर्षों में, कई छोटे आकार के, फिक्स्ड-विंग निगरानी ड्रोन, जैसे कि रेवेन, वास्प, और प्यूमा, विकसित किए गए. ड्रोन को विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाने लगा, जैसे कि सैन्य निगरानी, कृषि और डिलीवरी.

2010 – अब पूरी दुनिया में ड्रोन का उपयोग तेजी से बढ़ गया, और वे अधिक किफायती और व्यापक रूप से उपलब्ध हो गए. अब ड्रोन का उपयोग सेना द्वारा निगरानी और जासूसी के लिए किया जाता है. खेतों में फसलों की निगरानी, दवा छिड़काव जैसे कृषि कार्यों के लिए किया जाता है. उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरें और वीडियो लेने के लिए भी ये काफी उपयोगी है. इसके साथ ही आपदा प्रबंधन में मदद के लिए जैसे कि लापता की तलाश और बचाव कार्य में ड्रोन मददगार हैं. ड्रोन का उपयोग पैकेज और अन्य वस्तुओं की डिलीवरी के लिए किया जाता है. ड्रोन का उपयोग वैज्ञानिक शोध के लिए भी किया जाता है, जैसे कि जलवायु परिवर्तन और वन्यजीवों की निगरानी. लेकिन बढ़ते उपयोग के बाद भी ड्रोन बदनाम हो रहा है क्योंकि आज इनका सबसे ज्यादा इस्तेमाल हथियार के तौर पर किया जा रहा है.

मलय बनर्जी

लेखक – मलय बनर्जी

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